मैं कभी कभी सोचता हूँ कि भगवान कि सबसे अच्छी पूजा क्या है? मंदिरों में जाकर कुछ चढ़ावा करना, दान-पेटी में पैसे खिसकाना या उसकी जगह किसी जरूरतमंद कि मदद करना? मैं भी अक्सर मंदिर जाता हूँ, कुछ भेंट भी अर्पित करता हूँ लेकिन अगर कुछ बड़ा करना हो तो भगवान के आगे पैसे रखना मेरी समझ से परे है| अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा कर, भगवान के भरोसे बैठ जाना कहाँ कि दरियादिली है|

भक्ति अच्छी बात है, भगवान का भजन भी अच्छी बात है, लेकिन भगवान को पाने का सबसे अच्छा तरीका यह नहीं हो सकता| आप लोगो ने कई जगह पढ़ा होगा कि भगवान भी उन्ही कि मदद करता है जो अपनी मदद स्वंय करते है| अगर आप मदिरों में कुछ चढ़ावा चढ़ा कर सोचते हो कि वो धन अपने आप जरूरतमंद को पहुचेगा और इसके बाद आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं है तो क्या होगा?

ज़रा सोचिये अगर आपका कोई बहुत बड़ा इम्तिहान हो और आप रात भर पढ़ाई करने कि जगह भगवान् का भजन करते रहे यह सोचकर कि भगवान खुद आपकी रक्षा करेगे, उसका क्या नतीजा होगा? फेल न... इसी प्रकार अगर आप सही में किसी कि मदद करना चाह रहे है तो उसकी मदद करे और किसी और तरीके से अपनी उस इच्छा कि भरपाई करने कि कोशिश न करे|