माना कि आजकल टेक्स्चर (texture) कलर का रिवाज़ है,
शर्माजी को अपने वाटर प्रूफ डिस्टेंपर और उसके स्पेशल शेड्स पर नाज़ है।
पर दरवाजों के बचे हुए स्लेटी रंग से
जब मटके का पुराना स्टैंड
और एक टूटा हुआ स्टूल पेंट हो जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
नकली है खोआ - नकली रसगुल्ला है,
एक्सपोर्ट क्वालिटी की मिठाई
और चॉकलेट्स के गिफ्ट पैक का हर जगह हल्ला है।
पर चावल की लाई और खीलें चबाते हुए
जब मुँह में एक मीठा बताशा आ जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
भारत की दीवाली पर अब चीनियों का भी ख़ासा अधिकार है,
मिट्टी के दिये तो छोड़ो
बाजार में चायनीज एलईडी और डेकोरेटिव लाइट्स की भरमार है।
पर मूँछ वाले बल्बों की बरसों पुरानी झालर पर
टेस्टर लगाते हुए
जब अचानक सारा घर जगमगा जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
दीवाली की एक रात में करोड़ो रुपये एक साथ जलते हैं,
कहीं ढाई हजार वाली लड़ी
तो कहीं सतरंगी रोशनी फैलाने वाले बम चलते हैं।
पर उदास गोलू का फुस्स हुआ पटाखा
जब अचानक भड़ाम बोल जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
हर मुहल्ले की एक कॉमन सी कहानी है,
पाँच अमीर बेटों की त्यागी हुई एक काकी
या एक बूढ़ी नानी है।
अँधेरे घर में अकेली बैठी अम्मा के द्वार पर
जब कोई नटखट बालक
प्यार से एक दीया रख जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
दीवाली मनाने का असली मजा तभी तो आता है ...!
-- मनीष छाबड़ा
शर्माजी को अपने वाटर प्रूफ डिस्टेंपर और उसके स्पेशल शेड्स पर नाज़ है।
पर दरवाजों के बचे हुए स्लेटी रंग से
जब मटके का पुराना स्टैंड
और एक टूटा हुआ स्टूल पेंट हो जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
नकली है खोआ - नकली रसगुल्ला है,
एक्सपोर्ट क्वालिटी की मिठाई
और चॉकलेट्स के गिफ्ट पैक का हर जगह हल्ला है।
पर चावल की लाई और खीलें चबाते हुए
जब मुँह में एक मीठा बताशा आ जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
भारत की दीवाली पर अब चीनियों का भी ख़ासा अधिकार है,
मिट्टी के दिये तो छोड़ो
बाजार में चायनीज एलईडी और डेकोरेटिव लाइट्स की भरमार है।
पर मूँछ वाले बल्बों की बरसों पुरानी झालर पर
टेस्टर लगाते हुए
जब अचानक सारा घर जगमगा जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
दीवाली की एक रात में करोड़ो रुपये एक साथ जलते हैं,
कहीं ढाई हजार वाली लड़ी
तो कहीं सतरंगी रोशनी फैलाने वाले बम चलते हैं।
पर उदास गोलू का फुस्स हुआ पटाखा
जब अचानक भड़ाम बोल जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
हर मुहल्ले की एक कॉमन सी कहानी है,
पाँच अमीर बेटों की त्यागी हुई एक काकी
या एक बूढ़ी नानी है।
अँधेरे घर में अकेली बैठी अम्मा के द्वार पर
जब कोई नटखट बालक
प्यार से एक दीया रख जाता है,
दीवाली मनाने का असली मजा तब आता है।
दीवाली मनाने का असली मजा तभी तो आता है ...!
-- मनीष छाबड़ा
Superlike:-)
Very nice...
वाह वाह क्या बात है!
last para ... awsome :)
g8t work manish chabra ,
this one reminds me my old days ...
पर उदास गोलू का फुस्स हुआ पटाखा
जब अचानक भड़ाम बोल जाता है,
great work chhabraji!!! keep it up!!!
Excellent....good thoughts...keep writing
Very nicely said..
bahut badhiya :)
badhaaiyaan achhi rachna ke liye.
saadhu-saadhu
hamein to nishchit hee ye bahut baatein yaad dilayegi
ye sab hamari next generation nahin samajh payegi