[Composed on same day... one year back]
रुको नववर्ष!
अभी मत आओ, थोड़ा रुक जाओ,
थोड़ी और मोहलत दो, अरे कुछ तो रहम खाओ।
गलती तो मेरी ही है, शायद मैं इस साल भी सोता रह गया,
दुनियाँ में खुशियाँ बाँटने के संकल्प भूलकर, अपने ही सुख के लिए रोता रह गया।
सूरज ने कहा था, "मैं रोज आऊंगा"... वो रोज आया,
ध्रुव का वादा था, "मैं यहीं मिलूँगा रोज तिमतिमाऊंगा" ... उसने भी कर दिखाया।
मेरी खिड़की के घोंसले का कबूतर का बच्चा - अपनी बातों का पक्का,
साल के आखिरी दिन ही सही, कल उसने भी उड़ दिखाया,
और तो और बरामदे की भूरी का दुधमुंहा बालक, आज उसने भी एक छोटा चूहा खुद मार के खाया।
पर ऐसा ना हो की हर बार की तरह 'मैं' अपने वादे और सपने अगले वर्ष पर टाल जाऊं,
और वादा खिलाफों की फेहरिस्त में फिर पहला नंबर पाऊं।
मैंने इस साल कागज़ बचाना था, अपनी कार का पोल्यूशन चैक कराके प्रदूषण नियंत्रण में लाना था,
लेकिन आज भी जींस की जेब से रूमाल निकालने का तकल्लुफ नहीं कर पाया,
रोज की तरह हाथ धोये - पेपर नेपकीन खींचा - हाथ पोंछे और बाहर आया।
ट्रेन में पास बैठे दद्दा की बीड़ी को मैंने क़ानून की फूंक मार दी,
पर खुद को ना बदल सका,
पाँच रुपये की मूंगफली - दाने मुँह में - छिलके फिर सीट के नीचे,
जैसे हाथ ही नहीं रुका!
ऑफिस की जल्दी ने परसों सिग्नल तुड़वाया था,
सौ रुपये जेब में डालकर मुश्किल से पीछा छुड़ाया था।
तब भी मन यही बोला था, "अबकी जाने दो, अगली बार हुआ तो छः सौ दे के पक्की रसीद कटाऊंगा"
पर हे नूतन वर्ष, तुम अभी आ गए, तो सालों पुराने ये सारे संकल्प बस कैरी फॉरवर्ड ही कर पाऊंगा।
वैसे सपने और वादे मेरे ही नहीं हजारों के अधूरे हैं,
किसी के पास घर नहीं तो किसी के पास कपड़े ही नहीं पूरे हैं।
कोई हर साल गाँव में बन चुकी कागजी सड़क पर चलने का सपना रखता है,
कोई पिछले साठ सालों से आजादी की ही राह तकता है।
मुन्नी ने अपने पांचवें जन्मदिन से आज तक सायकिल का वादा ही तोहफे में पाया है,
पर गरीब बुधिया क्या करे, गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने का सपना तो बीस साल से सरकार ने दिखाया है।
बूढ़ी खाला की आँख की रोशनी जाती रही, पर बल्ब में रोशनी इस साल भी नहीं आई,
किसी का नल आज भी पानी को प्यासा है, तो किसी के पेट को इस साल भी एक ही वक्त की रोटी मिल पायी।
चंदू कल भी बिना छत और बिना बोर्ड वाले स्कूल में पढ़ने जाएगा,
और कल्लू... वो तो ये 31 दिसंबर भी पतली चादर के साथ फुटपाथ पर मनायेगा।
अगले तीन सौ पैंसठ दिन भी इसी तरह ना निकल जाएँ इसीलिए तुम्हे टोकता हूँ,
वर्ना घर आते नए मेहमान को मैं भी नहीं रोकता हूँ।
पर हे नववर्ष, यदि तुम फिर भी आना चाहते हो तो ख़ुशी से आओ,
पर कम से कम एक वचन 'तुम' तो निभाओ,
कि हर घर के दिये के लिए थोडा सा तेल, पेट के लिए दो वक्त का भोजन और ढेरों खुशियाँ साथ लाओगे,
मुझे अपने वादे पूरे करने की ताकत दोगे,
और हर आँख का हर सपना साकार करके ही वापस जाओगे।
स्वागत नववर्ष - स्वागत!
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ ... दिए गए कमेन्ट बॉक्स में आपके विचारों की अपेक्षा में ...
- मनीष छाबड़ा
once again ...good words good thoughts...keep on...
once again ...good words good thoughts...keep on...
awesome thinking and words telling truth of real life...
good one Chabra Ji...
Aameen....
Bahut Khoobsurat KhAYAL hAI
hAPPY BIRTHDAY ;
PMG-ST
Very nice!!!
If every Indian thinks like that, then we can bring change to our country
Thanks...nice thought!!!
Animikh Chaudhury
Awesome...