"यार मुझे गुड़गाँव जाना है। जाऊं, कुछ पंगा तो नहीं होगा?"
"पंगा? तुमने समझ क्या रखा है। बाहर वो
कोई दंगाई या आतंकवादी थोड़े ही हैं, हम तुम लोग ही तो हैं!"
"नहीं वो कहीं मैट्रो वेट्रो ना बंद करा दें"
"क्या बात कर रहे हो भाई। यहाँ
लोग दिल्ली में जाने कहाँ-कहाँ से [रामलीला] मैदान की फ्री बस और ऑटो सर्विसतक दे रहे हैं। उल्टा वहां तो ज्यादा से ज्यादा लोगों की जरूरत है। मैट्रो रुकने का तो सवाल ही नहीं उठता!"

रविवार (२१ अगस्त) को अन्ना के समर्थन में आयोजित महारैली में शामिल होकर जब मैं घर पंहुचा तो मेरे साथरहने वाले मेरे मित्र ने उपरोक्त संदेह व्यक्त किया। उस वक़्त तो मैंने उसकी शंका का निवारण कर दिया, लेकिन चारदिनों बाद ही मेरी बात गलत साबित हुई और सात मैट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए। पर यहाँ मजे की बात यह थी की मैट्रोसेवा बाधित रने का काम आन्दोलनकारियों ने नहीं बल्कि खुद सरकार ने अपनी सुरक्षा के लिए किया था। सचमुच! अन्ना के आन्दोलन में ऐसा कु भी नहीं हुआ जिस पर कोई उंगली तक उठा सके।

"गांधी फिर से जी उठे जागा देश महान,

शान्ति अहिंसा की ताकत का फि से मिला प्रमाण।"

मुझे याद पड़ता है कि कॉलेज के तृतीय वर्ष में वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव के दौरान एक वाद-विवाद प्रतियोगिता में विषय दिया या था- 'क्या गांधी जिन्दा हैं?' बहुत ही आशावादी स्वभाव का होने के बावजूद मैंने विषय के विपक्षमें बोलने का निर्णय लिया। वर्त्तमान समय में गाँधी के सत्य-अहिंसा के सिद्धांतों की प्रासंगिकता सिद्ध करने केलिए विषय का पक्ष लेने वालों को तब काफी मेहनत करनी पड़ी थी। लेकिन अन्ना की अहिंसक क्रांति ने आज केवल इस विषय के पक्ष में एक ठोस प्रमाण रखा है बल्कि इस वाद-विवाद को ही पूर्णतः एक तरफ़ा बना दिया है।

अन्ना के अनशन की नौवीं रात थी। मैं पानी पीने के लिए हॉल में गया लेकिन रात के साढ़े बारह बजे अन्ना को टीवी पर LIVE देखकर वहीं ठिठक कर खड़ा हो गया। खबर थी की अन्ना को आज रात पुलिस उठा कर ले जा सकती है। लेकिन अन्ना के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। पूरी ऊर्जा के साथ वो अभी भी जनता को अहिंसा के लिए प्रेरित कर रहे थे-"यदि वे मुझे ले जाएँ तो भी हिंसा नहीं करना। शान्ति से काम लेना। हम जेल भरेंगे लेकिन हिंसा नहीं करेंगे... " अन्ना ने निस्संदेह ही गाँधी और गाँधीवाद को इतिहास की किताबों और फिल्मों से निकाल कर आम जनता के बीच पुनः लाकर खड़ा कर दिया है। आज हर भारतीय की तरह मुझे भी प्रसन्नता है की मैंने ना केवल इन ऐतिहासिक पलों को जिया बल्कि इसमें सक्रिय भाग भी लिया।


सरकार के हर दांव पेंच का अन्ना और उनकी टीम ने जिस समझ बूझ के साथ जवाब दिया वो वाकई देखने लायक था। सरकार ने अपने सारे गेंदबाज और हर तरेह की गेंदबाजी करके देखी। लेकिन टीम अन्ना, मीडिया और जनता के साथ मिलकर सरकार की हर गेंद पर चौके छक्के जड़ती रही। रनों की बौछार होते देखकर दर्शकदीर्घा में बैठे विपक्ष ने भी बल्ला उठाकर सरकारी गेंदबाजों का मनोबल गिरा दिया। जब पुराने और मंझे हुए गेंदबाजों की एक ना चली तो सरकार ने अपने 'युवा' खिलाड़ी को मैदान में उतारा। लेकिन उस 'युवा' की पहली ही गेंद की टीम अन्ना, मीडिया और विपक्ष ने ऐसी धुनाई की कि गेंद स्टाम्प को छोड़ कर खुद गेंदबाज को ही अपने साथ मैदान से बाहर ले उड़ी।


उस विजयी शाम को संसद की बहस ख़त्म होने के बाद 'सरकार' को स्वयं अन्ना के मंच पर आना पड़ा। बारह दिनोंसे अन्न त्यागे अन्ना ने जिस सादगी के साथ स्वयं उठकर सरकार के प्रतिनिधियों का अभिवादन किया उसेदेखकर आँखें नम हो गईं।


अन्ना के इस आन्दोलन ने एक ओर 'आज होगा राखी का स्वयंवर/भैंस कि टांग ने शताब्दी को रोका/कलेक्टर का कुत्ता खोया' जैसी breaking news दिखाने वाले मीडिया को अपनी कर्त्तव्यनिष्ठता दिखाने का अवसर दिया। वहीं दूसरी ओर 'spy camera' के जरिये टूटते रिश्तों को देखकर fresh feel करने वाले, अपने परिवार से ज्यादा अभिषेक-ऐश्वर्या के पारिवारिक मसलों की चिंता करने वाले और दिन रात अपने laptop में code की कुछ हजार लाइनों में डूबे रहने वाले युवाओं को राष्ट्रहित के मुद्दों पर विचार करने के लिए आधार प्रदान किया है। प्रसन्नता की बात है कि दोनों ने ही इस अवसर का भरपूर सदुपयोग किया।

इतना बड़ा महायज्ञ सफलता पूर्वक संपन्न जरूर हो गया लेकिन कार्यालय, कैंटीन और सड़कों पर यहाँ वहां अभीभी ये चर्चा जारी है कि इस सब से क्या होगा। ट्रेन में काली वर्दी और चौराहे पर खाकी वर्दी क्या हरे पत्ते लेना बंद करदेगी? मेरे विचार से अन्ना के आन्दोलन ने इस प्रश्न का बखूबी जवाब दे दिया है। अन्ना ने 'इस देश का कुछ हो ही नहीं सकता' से निराश हुई जनता को एक नयी सोच दी है-'इस देश में वही होता है और वही होगा, जो हम चाहेंगे!' देखना अब ये है कि इस सोच को हम दैनिक जीवन में अपने साथ लेकर आगे बढ़ते हैं, या उसे एक सुनहरे फ्रेम में मड़वा कर घर की दीवार की सुन्दरता बढ़ाते हैं और अन्ना के अगले अनशन की प्रतीक्षा करते हैं।


अन्ना की आंधी की जयजयकार!


-- मनीष छाबड़ा

(यदि लेख में लगा रेखाचित्र किसी की भावनाएँ आहत करता हो तो क्षमा करें। )